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Saturday, January 23, 2010
हाथ काले क्यूँ हैं?
11:49 AM |
Posted by
राजीव तनेजा |
Edit Post
संता(रेल्वे स्टेशन से बाहर निकलते हुए खुशी से)...
"ओ बड़े दिनों में खुशी का दिन आया...ओ बड़े दिनों में खुशी का दिन आया ..
बंता: ...क्या बात?...बड़े खुश नज़र आ रहे हो...कोई लॉटरी लग गई क्या?....
संता: हाँ!...लॉटरी ही समझो..
बंता: लॉटरी की टिकट क्या कोयले की खदान से मिली है?...
संता: नहीं तो...क्यों?...क्या हुआ?...
बंता:तुम्हारे ये हाथ काले क्यूँ हो रहे हैं?...
संता: ओह!...ये?...ये तो खुशी के मारे काले हो रहे हैं...
बंता:लोगों को खुशी के मारे लाल होते हुए तो देखा था...ये काला होते हुए पहली बार देख रहा हूँ..
संता: अरे!...ये तो पत्नी को गाड़ी में चढ़ाने के बाद इंजिन को शाबाशी दे के आ रहा हूँ कि वो इस मुसीबत को ले के जा रहा है
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11 comments:
मस्त ...मजेदार राजीव भाई ...क्या शादी के बाद ऐसे ही हाल होता है.??बीवी गई और खजाना मिल गया.. बधाई राजीव जी बहुत अच्छा लगा..
पहली बात तो आजकल कोयले से चलने वाले इंजन चलते नही और दूसरी बात ...ऐसे पति बहुत समझ दार होते है जो स्त्री का इतना सम्मान करते है कि उनसे डर कर रहते है( भले ही मुसीबत समझ कर ) happy married life to santa haahaahaaha
न हो तब भी दुखी, विवाह हो जाये तो दुख ज्यादा.
राजीव जी बुरे फ़ंसे, और बाँट रहे दुख ज्यादा.
बाँट रहे दुख जादा, हँसी में आँसू छिपे हैं.
पत्नी को जब पता चला,फ़िर कहाँ छिपे हैं?
कह साधक कवि,पति-पत्नी पूरक हैं तब भी.
हो या ना हो शादी, दुखी रहते सब तब भी.
मस्त ...मजेदार...... ha ha ha ha ha ha ha....
हा हा हा बहुत खूब
Ha-ha-ha-ha !
वाह ! संते दी बल्ले बल्ले.
राजीव भाई! पत्नी मॆके चली जाये तो मुसीबत,ना जाये तो मुसीबत.खॆर !संता भाई से पूछ लेना,इस खुशी में कोई पार्टी-सार्टी दे रहे हों,तो हम भी शामिल हो जायें.
शुक्र है गले नहीं लिपटा
नहीं तो काला रे काला ...
पूरा गाना इसी पर फिल्माया प्रतीत होता
बहुत पहले की बात होगी। आज कल इंजन काले नहीं होते।
बहुत खूब, मजा आ गया ।
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